उगादी तेलगु का नववर्ष त्योहार है जिसे दक्षिण भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है इसके अलावा ये पर्व आन्ध्र प्रदेश और तेलांगाना में भी विशेष रूप से मनाया जाता है इस पर्व को युगादी और उगादी नाम से भी जानते हैं महाराष्ट्र और कई क्षेत्रों में इसे ‘ गुड़ी पड़वा‘ के नाम से भी जानते हैं। इस पर्व को चैत्र मास के पहले दिन ही मनाया जाता है क्योंकि हिन्दू पंचांग के अनुसार यह वर्ष का पहला महीना होता है उगादी उत्सव पर सूर्योदय के बाद जो दिन होता है वो भारतवर्ष का पहला दिन माना जाता है उगादी पर्व की शुरुआत बसन्त विषुव के बाद आने वाली अमावस्या के दिन से हो जाता है इसे बसन्त ऋतु के आगमन का समय माना जाता है नववर्ष के शुरुआत के बाद से ही मौसम बदलने लगता है इस पर्व का हिन्दू पंचांग के अनुसार कन्नड़ और तेलगु समुदायों के लिये नववर्ष होता है इस नववर्ष को ही युगादी और उगादी के रूप में मनाते हैं दक्षिण भारत में यह पर्व किसानों की नई फसल आने की खुशी में मनाते हैं। वहीं पुरानी कथाओं के अनुसार धरती माता पर सूर्य की पहली किरण इसी नववर्ष के दिन ही पड़ी थी और ब्रह्मपुराण में भी बताया गया है कि ब्रह्मा जी ने इसी दिन सृष्टि का चयन किया था कुछ स्थानों पे तो ये भगवान राम , विक्रमादित्य और धर्मराज युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के तौर पे भक्त लोग इस पर्व को बडे़ ही हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
उगादी पर्व दक्षिणी भारत के कई हिस्सों नये साल के आगमन में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक ,तेलांगाना और महाराष्ट्र में इस पर्व पे तो ये दिन देखने लायक होता है। विभिन्न क्षेत्रों में इस पर्व को अलग-अलग नामों से जाना जाता है
13 अप्रैल 2021 दिन मंगलवार को यह पर्व बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है इस दिन को लेकर लोगों में बहुत उत्साह होता है इस दिन लोग सुबह उठकर घरों की सफाई करते हैं उसके बाद घरों के प्रवेश द्वार को आम के पत्तों से सजाते हैं इसके साथ इस पर्व पर एक विशेष प्रकार की पेय बनाने की प्रथा है इसको पच्चड़ी नाम से जानते है इसको इमली, आम , नारियल , नीम के फूल और गुड़ जैसी चीजों को मिलाकर मटके में बनाया जाता है और इस विशेष पेय को आस-पड़ोस में भी बांटा जाता है इस पर्व पर पच्चड़ी के अलावा एक और चीज बनती है जिसका नाम वेबु बल्ला है इसे भी कर्नाटक में इस पर्व पे बनाया जाता है जो गुड़ और नीम के मिश्रण से बनाते हैं इससे हमें ज्ञान प्राप्त होता है इससे पता चलता है कि जीवन में हमें मीठेपन और कड़वेपन के दौर से गुजरना पड़ता है इस मिश्रण को खाते समय एक श्लोक का उच्चारण करते हैं जोकि ये है –
‘शतायुर्वज्रदेहाय सर्वसंपत्कराय च।’
‘सर्वारिष्टविनाशाय निम्बकं दलभक्षणम्।।’
इस श्लोक का अर्थ है कि वर्शो तक जीवित रहने, मजबूत और स्वस्थ शरीर की प्राप्ति के लिये और धन की प्राप्ति, सारी नकारत्मकता का नाश करने के लिये नीम के पत्ती खानी चाहिये।
इस पर्व पर भगवान विष्णु के मत्स्यावतार का पृथ्वी पर जन्म हुआ था आन्ध्र प्रदेश में इस दिन ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है और लोग दुकान का शुभारंभ करते है और नए व्यापार के लिए यह दिन बहुत शुभ माना जाता है। जिसमें इस दिन स्न्नान से पहले शरीर पर तेल और बेसन लगाया जाता है। पूजा के समय एक सफेद कपड़े पर चावल हल्दी और केसर से अष्टदल बनाया जाता हैए जिसका पूजा में प्रयोग किया जाता है। इस दिन को भक्तों द्वारा बहुत आस्था और श्रद्धा से मनाया जाता है।