Ganesh chaturthi: गणेश चतुर्थी का महापर्व भारतवर्ष में हर्ष और उल्लास के साथ माना जाता है। इस दिन हम और आप भगवान गणेश की प्रतिमा को अपने घर में स्थापित करते है। गणेश चतुर्थी का उत्सव पूरे 10 दिनों तक चलता है और 11वें दिन बप्पा की मूर्ति का विसर्जन करने के बाद खत्म होता है।
हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। जैसे- शादी-विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन संस्कार, कथा पाठ, माता की चैकी सभी शुभ कायें से पहले बप्पा की पूजा होती है। दरअसल, इसके पीछे एक मान्यता है कि बप्पा हर प्रकार के विघ्न, बाधा को हर लेते हें। उनकी पूजा करने से किसी भी कार्य को पूरा करने में कोई बाधा या रुकावट नहीं आती है।
इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। कथा के अनुसार, एक बार सभी देवाताओं में विवाद हो गया था कि सबसे पहले किस देवता की पूजा धरती पर होगी और सभी देवतागण अपने-आप को श्रेष्ठ बताने लगे। तब उस समय नारदजी ने सभी देवताओं से आग्रह किया कि वह सब महादेव के शरण में जाएं। फिर सभी देवतागण भोले बाबा के पास गए और अपनी समस्या बताई। फिर महादेव ने सभी देवताओं के बीच एक प्रतियोगिता रखी। महादेव ने कहा कि जो भी संपूर्ण ब्रह्माण्ड की 7 परिक्रमा करके मेरे पास आएगा उसकी पूजा की जाएंगी।
उससे बाद सभी देवता अपने-अपने वाहनों के साथ परिक्रमा करने के लिए निकल पड़े। किन्तु, गणेश जी नहीं गए और हाथ जोड़कर अपने माता-पिता शिव-पार्वती की परिक्रमा लगाने लगे। परिक्रमा पूरी होने के बाद महादेव ने कहा कि तुमसे बड़ा और बुद्धिमान इस पूरे संसार में और कोई नहीं है। माता और पिता की परिक्रमा करने से तुमने तीनो लोको की परिक्रमा पूरी कर ली है। जिसके बाद जब देवता आएं तो महादेव ने गणेश जी को विजेता घोषित कर दिया।
जिससे सभी देवतागण नराज हो गए और महादेव से कहा कि गणेश तो ब्रह्माण्ड की परिक्रमा लगाने गए ही नहीं। फिर वह विजेता कैसे हुए.?
देवताओं की बात सुनकर महादेव ने उन्हें बताया कि माता-पिता को समस्त ब्रह्माण्ड एवं समस्त लोक में सर्वोच्च स्थान दिया गया है। जो देवताओं व समस्त सृष्टि से भी उच्च माने गए हैं। तभी से भगवान गणेश देवताओं में सबसे पहले पूजनीय हैं। तभी से गणेशजी की पूजा सबसे पहले होने लगी। सभी देवताओं ने शिवजी के इस निर्णय को स्वीकार किया।
गणेश चतुथी तो भगवान गणेश के जन्म को लेकर धूम-धाम से मनाई जाती है लेकिन गणेश चतुथी को लेकर एक कथा है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब वेदव्यास जी ने भगवान गणेश को महाभारत सुनाई। तो गणेशजी एक ही आसन पर बैठकर संपूर्ण महाभारत को लिखा। 10 दिनों तक एक जगह बैठे रहे से गणेश जी के शरीर पर धूल-मिट्टी जम गई थी।
जिसके बाद वेदव्यास जी ने भगवान गणेश को स्नान करारा और उनके शरीर से धूल और मिट्टी साफ की। इसीलिए तभी से गणेश चतुर्थी पर गणेशजी को स्थापित किया जाता है और 10 दिन मन, वचन, कर्म और भक्ति भाव से उनकी उपासना करके अनंत चतुर्दशी को विसर्जित कर दिया जाता है।