प्रतिवर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन महान कवि एवं संत कबीर की जयंती मनाई जाती है। कबीर भारतीय मनीषा के प्रथम विद्रोही संत हैं, उनका विद्रोह अंधविश्वास और अंधश्रद्धा के विरोध में सदैव मुखर रहा है। माना जाता है कि संवत 1455 की इस पूर्णिमा को उनका जन्म हुआ था। बीच बाजार और चौराहे के संत थे। वे आम जनता से अपनी बात पूरे आवेग और प्रखरता के साथ किया करते थे, इसलिए कबीर परमात्मा को देखकर बोलते थे कि हम आज समाज के जिस युग में हम जी रहे हैंए वहां जातिवाद की कुत्सित राजनीति, धार्मिक पाखंड का बोलबाला, सांप्रदायिकता की आग में झुलसता जनमानस और आतंकवाद का नग्न तांडव, तंत्र-मंत्र का मिथ्या भ्रम-जाल से समाज और राष्ट्र आज भी उभर नहीं पाया है। कबीरदास के इसी व्यक्तित्व के कारण वह सबसे अलग थे और संसार उनको पूजता है, इस वर्ष कबीर दास की 643वीं जयंती है। ये जयंती 24 जून को सम्पूर्ण विश्व में मनाई जाएगी।
कबीर दास का जन्म एक मुस्लिम परिवार में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपनी शिक्षा एक हिन्दू गुरु द्वारा प्राप्त करी थी। फिर भी, उन्होंने खुद को इन दोनों धर्मों के बीच के वर्गीकरण से बचाए रखा। वो खुद को दोनों, “अल्लाह का बेटा” और “राम का बेटा” कहते थे और पौराणिक कथाओं के हिसाब से, उनकी मृत्यु होने पर दोनों ही, हिन्दू और मुसलिम धर्म के लोगों ने उनके अंतिम संस्कार के लिए उनके पार्थिव शरीर लेना चाहा था।
प्रकट दिवस पर गूंजी संत कबीर की वाणी-सदगुरु कबीर साहब के प्रकाशमयी रूप का ज्ञान तभी प्राप्त होगा, जब हम अपने अंतर आत्मा से बुराई और कुरीतियों का परित्याग करेंगे। उन्होंने कहा कि धन दौलत ऊंच नीच, जाति पात और समाज की कुरीतियों का कबीर साहब आजीवन विरोध करते रहे। कबीर साहब की वाणी और उनके आदर्शो पर चलने का संकल्प ही उनकी जयंती को सार्थक करेगी।
कबीर परमेश्वर चारों युगों में इस पृथ्वी पर सशरीर प्रकट होते हैं अपनी जानकारी स्वयं ही देते हैं। परमात्मा सतयुग में सत सुकृत नाम से त्रेता में मुनींद्र नाम से तथा द्वापर में करुणामय नाम से तथा कलयुग में कबीर नाम से प्रकट होते हैं। उनका किसी मां से जन्म नहीं होता।
MythsAbout GodKabir:- 24 जून को कबीर साहेब का प्रकट दिवस

- Advertisement -