3 जून 1924 को थिरुवरूर के पास तिरुक्कुवलई में जन्मे तमिलनाडु (Tamil Nadu) के अलैग्नर को तो आप जानते ही होंगे। अगर ये नाम नहीं सुना तो कोई बात नहीं आठवीं पास दक्षिणामूर्ति को जरूर जानते होंगे जो तमिलनाडु का पांच बार मुख्यमंत्री बना। जिनके तीन पत्नियां थीं। पद्मावती, दयालु अम्मल और रजती अम्मल। और चार बेटे और दो बेटियां हैं। साधारण से दिखने वाले करुणानिधि बाद में तमिलनाडु की राजनीति में परिवर्तन का अग्रदूत बने। करुणानिधि पांच बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने। अब तो आप समझ ही गए होंगे यहां बात तमिलनाडु के शलाका पुरुष एम करुणानिधि (M Karunanidhi) की हो रही है जिनका जन्म का नाम दक्षिणामूर्ति था। इनकी मां का नाम अंजुगम था और पिता का नाम मुथुवेल था। यह ईसाई वेलार समुदाय से आते हैं और उनके पूर्वज थिरुवरूर निवासी थे। उनकी प्रारंभिक स्कूली शिक्षा तिरुक्कुवलई और बाद में थिरुवरूर में हुई। किशोरावस्था में ही करुणानिधि को लिखने का शौक लग गया था। विभिन्न तमिल नेताओं के बारे में वह राजनीतिक लेखन किया करते थे। उन्होंने मानव नेसन नामक एक पत्रिका शुरू की जिसे बाद में मुरासोली नामक दैनिक समाचार पत्र के रूप में बदल दिया गया। करुणानिधि के समर्थक उन्हें प्यार से ‘कलाईनार’ यानी ‘कला का विद्वान’ कहते हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी करुणानिधि की पहचान एक राजनेता के अलावा फिल्म पटकथा लेखकए पत्रकार और तमिल आंदोलनकारी की रही है। करुणानिधि ने 3 शादियां की। पहली शादी पद्मावती से की, जिनसे जन्मे बेटे मुथु ने फिल्मों में काम किया लेकिन अब मां-बेटे दुनिया में नहीं हैं। करुणानिधि की दूसरी पत्नी दयालु अम्माल हैं। उनसे उनके 3 बेटे- अलागिरी एम. के. स्टालिन और तमिझरासु हुए। अलागिरी और स्टालिन राजनीति में हैं। दोनों में करुणानिधि के सियासी उत्तराधिकार की जंग चली और आखिरकार छोटे भाई को ज्यादा महत्व मिलने और पिता के पसंदीदा होने की वजह से पूर्व केंद्रीय मंत्री अलागिरी धीरे-धीरे पार्टी में हाशिये पर चले गए। दयालु अम्माल से पैदा हुए करुणानिधि के सबसे छोटे बेटे तमिझरासु फिल्म डिस्ट्रीब्यूशन और रियल एस्टेट के बिजनस में हैं। दयालु अम्माल से करुणानिधि की एक बेटी भी हैं- सेल्वी। सेल्वी बेंगलुरु में रहती हैं और उनके पति सेल्वम तमाम बिजनस चलाते हैं। करुणानिधि ने रजतीअम्माल से तीसरी शादी कीए जिनसे उन्हें एक बेटी कनिमोझी हैं। कनिमोझी भी राजनीति में हैं और फिलहाल राज्यसभा सांसद हैं।
करुणानिधि ने तमिल फिल्म उद्योग में एक पटकथा लेखक के रूप में अपने करियर का शुभारंभ किया। अपनी बुद्धि और भाषण कौशल के माध्यम से वे बहुत जल्द एक राजनेता बन गए। वे द्रविड़ आंदोलन से जुड़े थे और उसके समाजवादी और बुद्धिवादी आदर्शों को बढ़ावा देने वाली ऐतिहासिक और सामाजिक (सुधारवादी) कहानियाँ लिखने के लिए मशहूर थे। उन्होंने तमिल सिनेमा जगत का इस्तेमाल करके पराशक्ति नामक फिल्म के माध्यम से अपने राजनीतिक विचारों का प्रचार करना शुरू किया। पराशक्ति तमिल सिनेमा जगत के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई क्योंकि इसने द्रविड़ आंदोलन की विचारधाराओं का समर्थन किया और इसने तमिल फिल्म जगत के दो प्रमुख अभिनेताओं शिवाजी गणेशन और एस॰एस॰ राजेन्द्रन से दुनिया को परिचित करवाया। शुरू में इस फिल्म पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया था लेकिन अंत में इसे 1952 में रिलीज कर दिया गया। यह बॉक्स ऑफिस पर एक बहुत बड़ी हिट फिल्म साबित हुई लेकिन इसकी रिलीज विवादों से घिरी थी। रूढ़िवादी हिंदूओं ने इस फिल्म का विरोध किया क्योंकि इसमें कुछ ऐसे तत्व शामिल थे जिसने ब्राह्मणवाद की आलोचना की थी। इस तरह के संदेशों वाली करूणानिधि की दो अन्य फ़िल्में पनाम और थंगारथनम थीं। इन फिल्मों में विधवा पुनर्विवाह, अस्पृश्यता का उन्मूलन, आत्मसम्मान विवाह, ज़मींदारी का उन्मूलन और धार्मिक पाखंड का उन्मूलन जैसे विषय शामिल थे। जैसे.जैसे उनकी सुदृढ़ सामाजिक संदेशों वाली फ़िल्में और नाटक लोकप्रिय होते गए, वैसे उन्हें अत्यधिक सेंसशिप का सामना करना पड़ा 1950 के दशक में उनके दो नाटकों को प्रतिबंधित कर दिया गया।
14 साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश किया और हिंदी विरोधी आंदोलन में भाग लिया। उन्होंने अपने इलाके के स्थानीय युवाओं के लिए एक संगठन की स्थापना की। उन्होंने इसके सदस्यों को मनावर नेसन नामक एक हस्तलिखित अखबार परिचालित किया। बाद में उन्होंने तमिलनाडु तमिल मनावर मंद्रम नामक एक छात्र संगठन की स्थापना की जो द्रविड़ आन्दोलन का पहला छात्र विंग था। करूणानिधि ने अन्य सदस्यों के साथ छात्र समुदाय और खुद को भी सामाजिक कार्य में शामिल कर लिया। यहाँ उन्होंने इसके सदस्यों के लिए एक अखबार चालू किया जो डी॰एम॰के॰ दल के आधिकारिक अखबार मुरासोली के रूप में सामने आया। कल्लाकुडी में हिंदी विरोधी विरोध प्रदर्शन में उनकी भागीदारी, तमिल राजनीति में अपनी जड़ मजबूत करने में करूणानिधि के लिए मददगार साबित होने वाला पहला प्रमुख कदम था। इस औद्योगिक नगर को उस समय उत्तर भारत के एक शक्तिशाली मुग़ल के नाम पर डालमियापुरम कहा जाता था। विरोध प्रदर्शन में करूणानिधि और उनके साथियों ने रेलवे स्टेशन से हिंदी नाम को मिटा दिया और रेलगाड़ियों के मार्ग को अवरुद्ध करने के लिए पटरी पर लेट गए। इस विरोध प्रदर्शन में दो लोगों की मौत हो गई और करूणानिधि को गिरफ्तार कर लिया गया।
करुणानिधि तमिल साहित्य में अपने योगदान के लिए मशहूर हैं। उनके योगदान में कविताएं, चिट्ठियाँ, पटकथाएं, उपन्यास, जीवनी, ऐतिहासिक उपन्यास, मंच नाटक, संवाद, गाने इत्यादि शामिल हैं। उन्होंने तिरुक्कुरल, थोल्काप्पिया पूंगा, पूम्बुकर के लिए कुरालोवियम के साथ-साथ कई कविताएं, निबंध और किताबें लिखी हैं। करुणानिधि द्वारा लिखित पुस्तकों में शामिल हैं:- रोमपुरी पांडियन, तेनपांडि सिंगम, वेल्लीकिलमई, नेंजुकू नीदि, इनियावई इरुपद, संग तमिल, कुरालोवियम, पोन्नर शंकर, और तिरुक्कुरल उरई । उनकी गद्य और पद्य की पुस्तकों की संख्या 100 से भी अधिक है। करुणानिधि के नाटकों में शामिल हैं:- मनिमागुडम, ओरे रदम, पालानीअप्पन, तुक्कु मेडइ, कागिदप्पू, नाने एरिवाली, वेल्लिक्किलमई, उद्यासूरियन और सिलप्पदिकारम, उनके द्वारा लिखी गई 75 पटकथाओं में शामिल हैं:- राजकुमारी, अबिमन्यु, मंदिरी कुमारी, मरुद नाट्टू इलवरसी, मनामगन, देवकी, पराशक्ति, पनम, तिरुम्बिपार, नाम, मनोहरा, अम्मियापन, मलाई कल्लन, रंगून राधा, राजा रानी, पुदैयाल, पुदुमइ पित्तन, एल्लोरुम इन्नाट्टु मन्नर, कुरावांजी, ताइलापिल्लई, कांची तलैवन, पूम्बुहार, पूमालई, मनी मगुड्म, मारक्क मुडियुमाघ्, अवन पित्तनाघ्, पूक्कारी, निदिक्कु दंडानई, पालईवना रोजाक्कल, पासा परावाईकल, पाड़ाद थेनीक्कल, नियाय तरासु, पासाकिलिग्ल, कन्नम्मा, यूलियिन ओसई, पेन सिन्गम और इलइज्ञइन, उन्होंने 10 अगस्त 1942 को मुरासोली का आरम्भ किया। अपने बचपन में वे मुरासोली नामक एक मासिक अखबार के संस्थापक संपादक और प्रकाशक थे जो बाद में एक साप्ताहिक और अब एक दैनिक अखबार बन गया है।
करूणानिधि के विरोधियों, उनकी पार्टी के कुछ सदस्यों और अन्य राजनीतिक पर्यवेक्षकों ने करूणानिधि पर कुलपक्षपात को बढ़ावा देने और नेहरु-गांधी परिवार की तरह एक राजनीतिक वंश का आरम्भ करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है। डी॰एम॰के॰ को छोड़ कर जाने वाले वाइको की आवाज़ सबसे बुलंद है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि एम॰के॰ स्टालिन और परिवार के अन्य सदस्यों के लिए एक खतरे के रूप में वाइको को दरकिनार कर दिया गया।
डीएमके नेता एमण् करुणानिधि को तबीयत खराब होने के बाद चेन्नै के कावेरी अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वह अभी आईसीयू में हैं और डॉक्टरों के मुताबिक उनकी हालत स्थिर है। आइए नजर डालते हैंए कई दशकों से तमिलनाडु की राजनीति के एक ध्रुव बने हुए करुणानिधि के राजनीतिक जीवन पर। 1969 में कैंसर से अन्नादुरई की मौत के बाद करुणानिधि उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर उभरे। वह न सिर्फ मुख्यमंत्री बने बल्कि पार्टी का प्रमुख भी चुने गए और तभी से पार्टी के प्रमुखध्संरक्षक बने हुए हैं।
द्रविड़ आंदोलन की उपज मुथुवेल करुणानिधि अपने करीब 6 दशकों के राजनीतिक करियर में ज्यादातर वक्त तमिलनाडु की सियासत का एक ध्रुव बने रहे। तमिल सिनेमा के कद्दावर लेखकए स्क्रीनराइटर रहे करुणानिधि ने ‘पराशक्ति’ सरीखी फिल्मों का इस्तेमाल राजनीतिक विचारधारा के प्रचार-प्रसार के लिए किया। द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के संस्थापक सी.एन.अन्नादुरई के 1969 में निधन के बाद उन्होंने जो एक बार पार्टी की बागडोर संभाली, तब से आजीवन वह पार्टी के शीर्ष पर रहे। 5 बार तमिननाडु के सीएम रह चुके करुणानिधि पहली बार 1969 में ही मुख्यमंत्री बने। वह 1969-71, 1971-76, 1989-91, 1996-2001 और 2006-2011 तक 5 बार तमिलनाडु के मुख्यमंत्री रहे। 2011 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में DMK को दिवंगत जे. जयललिता की AIADMK के हाथों करारी हार झेलनी पड़ी। इस हार की बड़ी वजह यूपीए-2 के दौरान 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में बेटी कनिमोझी और परिवार के करीबी ए. राजा का नाम आना रहा। इसके अलावा परिवारवाद का आरोप भी महंगा पड़ा।
1989 के विधानसभा चुनाव में करुणानिधि ने अपने ‘वनवास’ का हवाला देकर वोटरों से भावुक अपील की। वह मुख्यमंत्री तो बने लेकिन उनकी सरकार महज 18 महीनों से कुछ दिन ज्यादा ही सत्ता में रह सकी। तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर ने श्री लंकाई तमिल चरमपंथी समूह LTTE को खुली छूट देने के आरोप में करुणानिधि सरकार को बर्खास्त कर दिया।